पंचमनगर महल : स्थापत्य कला का अद्भुत महल, जो राजघाट बाँध में डूबा रहता है by Rahul Yagnik

चन्देरी – चन्देरी जिला अशोकनगर (म.प्र.) से ललितपुर सड़क मार्ग पर ग्राम प्राणपुर, श्यामगढ़ होकर राजघाट के महारानी लक्ष्मीबाई सागर बाँध में डूब क्षेत्र का ग्राम पंचमनगर था। चन्देरी नगर से यह 11 कि.मी. की दूरी पर स्थित इस ग्राम में चन्देरी के शासक राजा दुर्गसिंह बुन्देला (सन् 1663-1687 ई.) ने अपनी रानी प्राणकुँअर बाई के नाम से एक महल और एक तालाब का निर्माण कराया था। डाॅ. अविनाशकुमार जैन (पी.एचडी. इतिहास एवं पुरातत्व) के अनुसार इस महल को यदि जल महल कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस महल की स्थापत्य कला अद्भुत है। संभवतः राजा दुर्गसिंह ने अतिमनोयोग से इस अद्वितीय महल की रचना कराई होगी। 17वीं शताब्दी ई. में निर्मित इस उत्तरमुखी महल की परिधि पूर्व व पश्चिम में लगभग 430 फुट तथा उत्तर व दक्षिण में लगभग 775 फुट है। महल का विशाल मुख्य द्वार 29.3 फुट चैड़ा तथा लगभग 45 फुट ऊँचा है। इस महल के अन्दर तीन महल के भाग बनाये गये थे। जिसकी दीवारें 12.3 फुट मोटी हैं। महल की परिधि के चारों ओर चार मीनारें (बुर्ज) सुरक्षा व्यवस्था हेतु निर्मित थे। इस विशाल महल में तीन कुएँ पीने योग्य जल के लिए निर्मित हैं।

 

 

इस महल के अन्दर तीन भाग निर्मित हैं। मुख्य द्वार के सामने महल का प्रथम भाग जो 110 फुट लंबा व 110 फुट चैड़ा (वर्गाकार) है। जिसका मुख्य द्वार उत्तरमुखी है। जिसमें राजा आमजन की समस्याओं को सुनते होंगे। इस भाग में आने के पश्चात् ही महल के अन्य भाग में जाया जा सकता होगा। इसी भाग के पश्चिम में जाने पर भव्य रंगभवन का द्वार था। अर्थात् मुख्य दरबार यहीं सजा करता होगा। सम्पूर्ण महल का यह सबसे सुन्दर भाग था। जिसकी लंबाई 100 फुट पूर्व व पश्चिम में तथा चैड़ाई 81 फुट उत्तर व दक्षिण में है। इसके इसके चारों ओर बैठने के लिए दालान लगभग 11 फुट चैड़ी निर्मित थी। दक्षिण दिशा में संभवतः यह द्विमंजिला होगा। इसी दिशा में पीछे की ओर एक गैलरी निर्मित है जिससे राज परिवार के लोग आते-जाते होंगे। इस भाग में बीचों-बीच खुला भाग 60 फुट लंबा व 17 फुट चैड़ा है। जिसके मध्य में फब्बारे की व्यवस्था की गई है।

 

 

इस महल का तीसरा भाग जो रनवास है। इस रंगभवन के पश्चात् कुछ दूर स्थित है। मुख्य द्वार से पश्चिम दिशा में जाने पर इस भाग में पहुँचा जा सकता है। यह तीन मंजिल का निर्मित था। इसके आगे वर्गाकार (20.6 लंबा व 20.6 चैड़ा) कुण्ड निर्मित है, जिसमें जल भरा रहता है। यह मुख्य रनवास 74 फुट लंबा तथा 16.6 फुट चैड़ा है। इस महल के भाग के आगे आयताकार अनेक संरचनाएँ निर्मित हैं। संभवतः यह कक्ष बने होंगे।

इस महल की एक विशेषता यह है कि सम्पूर्ण महल की प्रत्येक दीवार के नीचे जल निकालने के लिए पाइप लाइन बिछाई गई थी। महल के प्रत्येक मंजिल की छत पर भी पाइप लाइन बिछाई गई थीं। इसका स्पष्ट महत्व तो ज्ञात नहीं है। फिर भी इस महल में प्रत्येक स्थान पर फब्बारों की व्यवस्था दिखाई देती है। जो इस पाइप लाइन से होकर जाता होगा और संभावना यह भी है कि इस महल का निर्माण बेतवा सरिता के किनारे कराया गया था। वर्षा ऋतु में जल का प्रवाह अत्याधिक होने के कारण महल मंे जल का स्तर न बड़े और जल इन पाइप लाइनों से होकर दूसरी दिशा में निकल जावे। जो भी हो वर्तमान में तो यह महल डूब क्षेत्र में आ जाने के कारण नष्ट प्रायः है। यदि जल मग्न होने के पूर्व इस महल की स्थापत्य कला को कोई विद्वान जान लेता तो महल के अन्दर इस जल की व्यवस्था का रहस्य भी ज्ञात हो जाता। वर्तमान में यह महल लगभग समाप्ति की ओर है। वर्ष 2016 में यह लगभग 36 वर्षों के पश्चात् दिखाई दिया था और भाग्य से इस वर्ष भी हम इसको देख पाये हैं। जितना इस महल का अध्ययन कर पाये वह आप सभी से शेयर कर रहे हैं। इस महल के पूर्व दिशा में एक गोल चबूतरा निर्मित है। जिसे बुन्देला बब्बा का चबूतरा कहते हैं। आज भी यह ज्यों का त्यों बना दिखाई देता है। जिस पर पूर्व दिशा में पश्चिम मुखी बैठने का स्थान भी बनाया गया है। महल के पीछे पूर्व दिशा में पूर्वमुखी एक गुम्बदाकार गुमटी निर्मित है, जिसके आगे चैकार कुण्ड़ (हाॅज) निर्मित है। संभवतः यह इस महल का मन्दिर रहा हो।

 

 

 

इस महल का वर्तमान में अवलोकन करने पर यह पाया गया कि इस महल की मुख्य प्राचीर (परिधि) अनगढ़ पत्थरों से बनाई गई थी। जिसके चारों ओर किनारों पर बुर्ज (गोल) बनाये गये थे तथा सम्पूर्ण महल देशी मिट्टी की पकी ईटों से बनाया गया है। जिनकी जुड़ाई चूने के मसाले में की गई है। दीवारों पर इसी मसाले का ही प्लास्टर किया गया है। चूने के साथ एक मसाला एक विशेष प्रकार से तैयार किया जाता था। बजरी में चूना, उडद की दाल, ईंटों के टुकड़े, सन के टुकड़े (जिससे रस्सी बनाई जाती है) तथा बेल फल जो चिकना होता है। सभी को एक निश्चित अनुपात में एकत्रित कर उसे पीसा जाता था। इस मसाले के कारण यह महल वर्षों से जलमग्न होने के कारण भी अभी तक अपने बजूद के लिए लड़ रहा है। जबकि आज की तकनीक के मकान उच्च स्तरीय सीमेन्ट का उपयोग करने के बाबजूद भी अधिकतम एक सौ वर्षों में धराशायी हो जाते हैं। आसपास के ग्रामीण जनों से चर्चा करने पर यह ज्ञात हुआ है कि यह महल जलमग्न होने के कारण इतना ध्वस्त नहीं हुआ, जितना यहाँ के आसपास के लोगों ने महल की दीवारों को गिराकर पत्थर आदि भवन निर्माण करने की सामग्री भर ले गये। महल के तीनों भाग ईंटों से निर्मित थे इस कारण वह अभी भी बने हैं क्योंकि ईंटों की चूने में चिनाई होने के कारण तोड़ने पर ईंट उनको प्राप्त नहीं हो सकती थी। पत्थर चूने को छोड़ देता है इसलिए इस महल की मुख्य प्राचीर वर्तमान में समाप्त हो चुकी है।

महल की मुख्य परिधि के बाहर दक्षिणी दिशा में राजा दुर्गसिंह ने अपनी रानी के ही नाम से एक तालाब का निर्माण कराया था। जिसे प्राणसागर कहते थे। इस तालाब का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा में था। जिसके अवशेषों को देखकर प्रतीत होता है कि यह द्वार भव्य व विशाल रहा होगा। इस तालाब की तीन ओर की सीमाएँ आज भी दिखाई दे रहीं हैं। कहते हैं कि विकास में कुछ विनाश तो होता ही है। बाँध के निर्माण से जो क्षेत्रवासियों का विकास हुआ वहीं इस महल जैसी ऐतिहासिक धरोहरों को हमें खोना पड़ा है। दुःख केवल इस महल की स्थापत्यकला का है। जिसे ज्ञात करना आवश्यक था।